Thursday, February 14, 2013

प्रेम एक भावना नहीं यह एक विकल्प है

यदि हम उत्पत्ति 1:28 और 31 पढ़ें तो पता चलता है कि परमेश्वर ने आदम और हवा को आशीषित किया और जो भी परमेश्वर ने रचा वह सब अच्छा था |
इसका मतलब है कि जो कुछ भी परमेश्वर ने रचा वह पवित्र था, अमर था और आशीषित था 
लेकिन उत्पत्ति 3:6 और 7 से पता चलता है कि पहले मनुष्य और उसकी स्त्री ने पाप किया और उसके फल स्वरुप परमेश्वर का प्रेम प्रकट हुआ |
हैं न चौकाने वाली बात!
परमेश्वर ने इस पृथ्वी को शापित कर दिया और मनुष्य को कठिन परिश्रम व अपने पर्यावरण की देख भाल एक ट्रेनिंग के तौर पर दे दी, जिससे कि उसके उद्धार की योजना  फलान्वित हो सके, क्योंकि "मनुष्य का प्रेम स्वार्थी हो गया था |"
परमेश्वर ने अपना पुत्र यीशु हमारे लिए दिया, जो कि हमारा चंगा करने वाला और उद्धारक है 
उसके कार्य ने उसके दैविक अभिषेक को सिद्ध कर दिया 
उसके हर कार्य में प्रेम, करुना और अनुराग स्पष्ट दिखाई दिए 
उसी पुत्र ने हमे अपनी पवित्र आत्मा दी और हमें अपना निवास स्थान बना लीया 
इब्रानियों 13:8 कहता है कि यीशु मसीह जैसा कल थ, वही आज है और सर्वदा रहेगा 
आज यीशु का वही प्रेम, हम सबकी  ज़रुरत है 
1 कुरंथियों 6:19 कहता है कि तुम पवित्र आत्मा के मंदिर हो
क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर अपने राज्य के लिए तुम्हें अपने वरदान और फल देगा?
किस तरह के प्रेम को परमेश्वर प्रकट करना चाहेगा?
पढ़ें लुका 4:18,
कि प्रभु का आत्मा मुझ पर है, इसलिये कि उस ने कंगालों को सुसमाचार सुनाने के लिये मेरा अभिषेक किया है, और मुझे इसलिये भेजा है, कि बन्धुओं को छुटकारे का और अन्धों को दृष्टि पाने का सुसमाचार प्रचार करूं और कुचले हुओं को छुड़ाऊं।
यीशु का दिल द्रवित हुआ  
यीशु ने मनुष्य का स्वभाव लिया 
यीशु प्रेम से उनके करीब गया 
लोगों ने उसके प्रति कैसी प्रतिक्रिया की?
लोग उसके प्रति आकर्षित हुए 
लोग उसके द्वारा उत्साहित हुए 
लोगों ने उसे प्यार किया 
तुम्हारे विषय में क्या है, क्या तुम अपने शरीर को उसका मंदिर कहना चाहोगे?
पढ़ें 1 कुरंथियों 6:19-20,
क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो॥ 
मैं अपना पहले वाला प्रश्न दोहराना चाहूंगी, क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर अपने राज्य के लिए तुम्हें अपने वरदान और फल देगा?
हाँ! 
इसका मतलब इस शरीर के देखभाल की ज़रुरत है 
इसका मतलब है कि इस शरीर, आत्मा और प्राण के देखभाल की ज़रुरत है 
ऊपर वाला वचन कहता है कि उसने अपनी आत्मा अर्थात अपना स्वभाव हमें दे दिया है 
ठीक!
मैं तुम्हें एक उधारण देती हूँ -
जब मेरा पुत्र जन्मा तो वह कुछ मेरे और कुछ अरुण के स्वभाव को लेकर जन्मा | जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया उसके व्यवहार में हमारे व्यवहार की झलक दिखाई दी, क्योंकि वह हमारे संग-संग रह रहा था 
तुम नया जीवन पा चुके हो, परमेश्वर तुम्हारा पिता है और तुम परमेश्वर के निवास स्थान हो, इसका मतलब है कि परमेश्वर तुम्हारे संग-संग है 
अगर तुम परमेश्वर के हाथ में अपना नियंत्रण दे दो, तो तुम उसके स्वभाव के सहभागी हो जाओगे, लेकिन याद रहें- परिपक्वता एक प्रतिक्रिया है |
बोलो -  परिपक्वता एक प्रतिक्रिया है
एक पल लो और अपने आप को जांचों 
क्या तुम्हारा दिल लोगों के लिए द्रवित हुआ है?
क्या तुमने यीशु के स्वभाव को ग्रहण किया है?
क्या तुम्हारा दृष्टिकोण लोगों के प्रति प्रेम भरा है?
क्या तुम यीशु को तुम्हें अपने स्वभाव में रूपांतरित करने की अनुमति दोगे?
बोलो - हाँ! परमेश्वर अनुमति है 
उसका स्वभाव कैसा है?
पढ़ें गलातियों 5:22-23,
पर आत्मा का फल प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, और कृपा, भलाई, विश्वास, नम्रता, और संयम हैं; ऐसे ऐसे कामों के विरोध में कोई भी व्यवस्था नहीं। 
मैंने अपने पिछले सन्देश में नौ नहीं बल्कि पवित्र आत्मा के बारह फल का जिक्र किया था 
पढ़ें प्रकाशित वाक्य 22:1-2,
फिर उस ने मुझे बिल्लौर की सी झलकती हुई, जीवन के जल की एक नदी दिखाई, जो परमेश्वर और मेंम्ने के सिंहासन से निकल कर उस नगर की सड़क के बीचों बीच बहती थी। और नदी के इस पार; और उस पार, जीवन का पेड़ था: उस में बारह प्रकार के फल लगते थे, और वह हर महीने फलता था; और उस पेड़ के पत्तों से जाति जाति के लोग चंगे होते थे। 
फिर 
पढ़ें यहेज़केल 47:9-12,
और जहां जहां यह नदी बहे, वहां वहां सब प्रकार के बहुत अण्डे देने वाले जीव-जन्तु जीएंगे और मछलियां भी बहुत हो जाएंगी; क्योंकि इस सोते का जल वहां पहुंचा है, और ताल का जल मीठा हो जाएगा; और जहा कहीं यह नदी पहुंचेगी वहां सब जन्तु जीएंगे।
10 ताल के तीर पर मछवे खड़े रहेंगे, और एनगदी से ले कर ऐनेग्लैम तक वे जाल फैलाए जाएंगे, और उन्हें महासागर की सी भांति भांति की अनगिनित मछलियां मिलेंगी।
11. परन्तु ताल के पास जो दलदल ओर गड़हे हैं, उनका जल मीठा न होगा; वे खारे ही रहेंगे।
12. और नदी के दोनों तीरों पर भांति भांति के खाने योग्य फलदाई वृक्ष उपजेंगे, जिनके पत्ते न मुर्झाएंगे और उनका फलना भी कभी बन्द न होगा, क्योंकि नदी का जल पवित्र स्थान से निकला है। उन में महीने महीने, नये नये फल लगेंगे। उनके फल तो खाने के, ओर पत्ते औषधि के काम आएंगे। 
दो भिन्न पुस्तकों में से इन वचनों को पढ़ने के बाद यह निश्चित हो जाता है कि परमेश्वर हमारे शरीर और स्वभाव के प्रति चिंतित है और उसके स्वभाव के बारह अलग-अलग स्वाद है 
क्या तुम परमेश्वर के स्वभाव को खोजने के लिए तैयार हो?
चलिए हम प्रेम से शुरुआत करते है 
 पढ़ें 1 थिस्सलुनीकियों  4:9
किन्तु भाईचारे की प्रीति के विषय में यह अवश्य नहीं, कि मैं तुम्हारे पास कुछ लिखूं; क्योंकि आपस में प्रेम रखना तुम ने आप ही परमेश्वर से सीखा है।
कौन तुम्हें प्रेम सिखाएगा?
बोलो - परमेश्वर स्वयं 
आज के सामाज में प्रेम शब्द का दुरूपयोग होता है 
इस शब्द की हम इस तरह व्याख्या कर सकते है 
1. परमेश्वर का प्रेम-अनुराग जो बिना शर्त है 
2. पति-पत्नी का प्रेम-लगाव जो एक दूसरे के प्रति है 
3. पारिवारिक प्रेम जो परिवार के सदस्यों में होता है 
4. आपसी-प्रेम जो भाई-चारे या मैत्रीपूर्ण है 
इसके अतिरिक्त प्रेम अपवित्र है 
अब कौन है जो तुम्हें प्रेम सिखाएगा?
बोलो-पवित्र आत्मा
याद रहें 
वरदान दिए जातें है लेकिन फल विकसित होतें है 
अगर तुम एक फल का पौधा लगाना चाहो तो तुम क्या करोगे?
1. एक फल का चुनाव करोगे 
2. उसके लिए एक स्थान निर्धारित करोगे 
3. मिटटी की गुडाई करोगे 
4. पौधा लगाओगे 
5. जमीन सोफ्ट और गीली रखोगे 
6. उसका रखरखाव या ध्यान रखोगे 
इसका मतलब है पौध लगाने के पहले तुम छाटोगे और फिर चार से पांच साल तक उसकी देखभाल करोगे 
उसके बाद उस फल के पौधे का रूप दिखाई देगा 
इससे यह स्पष्ट पता चलता है कि परिपक्वता एक रात में नहीं आती, जैसे एक पेड़ का फल एकदम से नहीं बनाता उसी तरह एक व्यक्ति का गुण भी परिपक्व होने में समय लेता है 
यीशु ने मनुष्य के चरित्र के बारे में कहा 
पढ़ें मत्ती 7:16-20
उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोग क्या झाडिय़ों से अंगूर, वा ऊंटकटारों से अंजीर तोड़ते हैं? इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। अच्छा पेड़ बुरा फल नहीं ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। सो उन के फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।
मैं तुमसे प्यार करता हूँ यह कहना जितना सरल है, किसी को प्रेम करना उतना ही कठिन है 
ध्यान से सुनो और जांचों 
1. परमेश्वर के प्रति हमारा प्रेम प्रदर्शन 
पढ़ें मालाकी 3:8, 
अगर तुम परमेश्वर को दे नहीं सकतें हो तो तुम्हें परमेश्वर पर भरोसा नहीं है, फिर परमेश्वर के प्रति तुम्हारा प्रेम कहाँ है? 
2. लोगों के प्रति हमारा प्रेम प्रदर्शन 
जब कोई व्यक्ति तुम्हारी मर्जी के विपरीत और तुम्हें अपशब्द कहें, तुम भड़क पड़ते हो, तुम्हारा लोगों के प्रति प्रेम कहाँ गया?
यीशु ने पिता से उसे पीढ़ा पहुचाने वालों को माफ़ कर देने को कहा 
3. पवित्र आत्मा के प्रति हमारा प्रेम प्रदर्शन 
पढ़ें गलातियों 5:19-21, 
कितनी बार दूसरो को आगे बढ़ता देख कर तुम्हारा दिल ईर्ष्या से भर जाता है, क्या तुम भूल गए कि तुम पवित्र आत्मा का मंदिर हो? 
2 राजा 18:30-38, में एलिया ने वेदी को पूरी तरह पानी से भिगो दिया लेकिन उसने जैसे ही परमेश्वर को आवाज़ लगाई स्वर्ग से आग उतरी और सब जला गई |
आज फिर उसी आग की हमें ज़रुरत है
आग जो हमारे चरित्र से सब कुछ जो अशुद्ध है जला दे 
जब अशुद्ध जल जायेगा बीमारियाँ भाग जायेंगी, तकलीफें भाग जायेंगी 
तब तुम पवित्र आत्मा का पवित्र मंदिर होगे 
जिसके हाथ लोगों को चंगाई देंगे 
जिसकी उपस्थिति लोगों को आशीषित करेगी 
अपने स्थान पर खड़े हो, 
परमेश्वर तुम्हे प्रेम सिखाना चाहता है 
क्या तुम प्रेम सीखने के लिए तैयार हो?
क्या तुम प्रेम को एक विकल्प बना रहें हो 
चलो प्रार्थना करें 
पिता परमेश्वर, होने पाए कि मैं आप के प्रेम से भर जाऊं  इसलिए मेरी मदद करें, ताकि मैं अच्छे फल धारण कर सकूं, मेरी मदद करें ताकि मैं अच्छे और बुरे फल को परख सकूं और मुझमें परमेश्वर का बिना शर्त वाला अनुराग बह सके प्रभु यीशु के नाम पर|
आमीन

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