Sunday, December 30, 2012

जीने की आतंरिक ज़रुरत

"जीवन का हर एक्शन मनुष्य के जीने की आतंरिक और बेसिक ज़रुरत पर निर्भर है, जो कि वास्तव में आत्म-प्रेम है|"
मुझे अभी भी याद है, जब हम अपने बेटे को जो कि अमेरिका जा रहा था टीका लगवाने के लिए सरकारी अस्पताल ले गए| वहां रिसेप्शन पर छोटे बच्चो के वजन तौलने वाला काउंटर था | वजन की मशीन के हुक में एक रोम्पर जैसी ड्रेस लटक रही थी| एक माँ अपने दो महीने के बच्चे का वजन लेने आई | उसका बच्चा बड़े आराम से अपनी माँ की गोद में सोया हुआ था| उसने उस बच्चे को तौलने वाले रोम्पेर बैग में डाला, तब तक बच्चे को कोई परेशानी नहीं हुयी, लेकिन जैसे ही उसकी माँ ने उसे हूक पर लटकाया, बच्चे ने अपनी जान बचाने के लिए अपने हाथ-पैर तेजी से मारे और चिल्ला कर रोने लगा
बच्चे ने ऐसा क्यों किया?
उसने असुरक्षित महसूस किया और अपनी काबलियत के अनुसार बचाव की कोशिश की
हम और तुम भी अपने जीवन को बचाने के लिए कुछ ऐसा ही करते है
क्या यह सच नहीं है?
याद रहें, "जीवन का हर एक्शन मनुष्य के जीने की आतंरिक और बेसिक ज़रुरत पर निर्भर है, जो कि वास्तव में आत्म-प्रेम है |"
हम अपने परिवार से प्रेम करते है, मित्रों से करते हैं, रिश्तेदारों से करते है और अपने पड़ोसियों से भी करते है | एक तरह से हम सभी अपने चाहने वालों के लिए अनमोल हैं |
परमेश्वर भी हमे अपने परिवार की तरह प्रेम करता है | हम परमेश्वर की निगाह में इतने अनमोल हैं कि उसने हमारे लिए अपना पुत्र दे दिया कि जो उस पर विश्वास करे वह अनंत जीवन पाए |
सन 2001 में मैंने अपने जीवन में इतना संघर्ष किया कि मुझे हर सड़क का अंत बंद लगा |  मैं तंजानिया में थी, मेरा बेटा मिशन स्कूल में पढ़ रहा था, मैं जिनसे मिलती थी वे यीशु को जानने वाले थे फिर भी किसी ने मुझे यीशु से नहीं मिलवाया| मेरे जीवन में उसकी सख्त ज़रुरत थी फिर भी वह मुझसे दूर रखा गया |
मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत लोग अविश्वासियों के उद्धार के लिए प्रार्थना कर रहें होंगे
मुझे पूरा विश्वास है कि बहुत लोग भारतियों के उद्धार के लिए प्रार्थना कर रहें होंगे
मुझे इन सब बातों पर पूरा विश्वास है, लेकिन फिर भी मेरे पास एक भी व्यक्ति मसीह के प्रेम, चंगाई और उद्धार के सन्देश के साथ नहीं आया
उस दिन तक जब मैं पूरी तरह टूट गयी तब परमेश्वर ने मेरी एक मित्र को जो परमेश्वर में नहीं थी का प्रयोग किया, उसने मुझसे किसी ख़ास व्यक्ति के घर जाने को कहा और बोला उससे पूछो कि उसे कैसे छुटकारा मिला|
मैं एक बार फिर बोलूंगी, "जीवन का हर एक्शन मनुष्य के जीने की आतंरिक और बेसिक ज़रुरत पर निर्भर है, जो कि वास्तव में आत्म-प्रेम है|"
क्या तुम मुझसे पूछोगे कि मित्र के सुझाव का मुझ पर क्या प्रभाव पड़ा ?
मैं तुरंत समाधान के लिए भागी!
बोलो- आत्म प्रेम
बोलो- जीने की आतंरिक ज़रुरत
पढ़ें मत्ती 9:37-38
उसने अपने चेलों से कहा, "फसल तो बहुत खड़ी है, पर मजदूर थोड़े हैं, अतः खेत के मालिक से विनती करो कि वह अपने खेत में मजदूर भेजे |"
यीशु ने उपदेश सुनाया, चंगा किया और लोगों को उद्धार दिया
सोचो - मुझे कभी भी विश्वासियों के द्वारा सुसमाचार नाही मिला, लेकिन परमेश्वर ने एक अविश्वासी को मुझे मार्ग दिखाने के लिए प्रयोग में लिया
बोलो - परमेश्वर किसी को भी प्रयोग कर सकता है
बोलो - जीने की आतंरिक ज़रुरत
सोचो - तुम्हारा और मेरा परमेश्वर के राज्य में क्या रोल है
पढ़ें रोमियों 10:14-15
फिर वे उसे क्यों पुकारेंगे जिस पर उन्होंने विश्वास ही नहीं किया? और वे उस पर कैसे विश्वास करेंगे जिसके बारें में उन्होंने सुना ही नहीं? भला वे प्रचारक के बिना कैसे सुनेगे? और वे प्रचार कैसे करेंगे जब-तक वे भेजे नहीं जाएँ? ठीक जैसा कि लिखा है, "उनके पाँव कैसे सुहावने है जो भली बातों का सुसमाचार लाते है !
क्या तुम इंतज़ार कर रहें हो कि कोई तुम्हें भेजे?
तो मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है
पढ़े मत्ती 28:19-20
इसलिए जाओ और सब जातियों के लोगों को चेले बनाओ और उन्हें पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो, और जो-जो आज्ञाएँ मैंने तुम्हें दी हैं उनका पालन करना सिखाओ| और देखो मैं युग के अंत तक सदैव तुम्हारे साथ हूं |
यीशु ने तुम्हे अनुमति दी है कि तुम जाओ और सुसमाचार सुनाओ | अगर तुम नहीं जाओगे, तो वह किसी और को भेज देगा | परमेश्वर लोगों में पक्षपात नहीं करता है | मैं तैयार हूं तो मुझे प्रयोग करेगा, तुम तैयार हो तो तुम्हे करेगा |
बोलो- अपने पडोसी को अपने समान प्रेम करो
बोलो- जीने की आतंरिक ज़रुरत
जिस रात्रि यीशु को सूली पर चढ़ाया गया, पतरस ने यीशु के विषय में तीन बार नाकारा | पतरस ने झूठ बोला क्योंकि वह भयभीत था, लेकिन बाद में उसको बहुत अफ़सोस हुआ और वह रोया | वही पतरस जब यीशु का पुनुरुत्थान हुआ तो वह पूरी तरह से बदल गया, क्योंकि तब वह यीशु का सत्य पूरी तरह से जान चुका था |
पढ़े युहन्ना 21:17
उसने उससे तीसरी बार कहा, "शमौन  युहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीति करता है?" पतरस उदास हुआ क्योंकि उसने उससे तीसरी बार ऐसा कहा,, क्या तू मुझसे प्रीति करता है?" और उससे कहा, "हे प्रभु तू सब कुछ जानता है, तू यह भी जानता है कि मैं तुझसे प्रीति करता हूं|
यीशु ने उससे कहा, "तू मेरी भेड़ो को चरा"
आज हममे से प्रत्येक को यह प्रश्न करना चाहिए कि क्या मैं यीशु से प्यार करता हूं?
यीशु पतरस से पूछ सकता था, "क्या तुम विश्वास में दृढ हो, क्या कलीसिया में तुम सम्मानित स्थान पर नियुक्त हो, क्या तुमने दुष्ट आत्माएं भगाई है," लेकिन उसने तो साधारण तरीके से पूछा, शमौन, युहन्ना  के पुत्र, क्या तू मुझसे प्रीति करता है?
कुछ लोग अपना प्रेम अपने काम में, अपने परिवार में, सेवा के काम में लगा देतें हैं और यीशु को इंतज़ार करने देतें हैं
बोलो- यीशु से प्रीति करो
बोलो- जीने की आतंरिक ज़रुरत
यीशु से प्रीति करने से क्या मतलब है?
इसका मतलब है उसको जीवन में प्राथमिकता देना और उसके वचनों पर चलना
पढ़ें भजन संहिता 2:7-8
निश्चय ही मैं यहोवा के वचन का प्रचार करूंगा, उसने मुझसे कहा, "तू मेरा पुत्र है आज ही मैंने तुझे उत्पन्न किया है| मुझ से मांग तो निश्चय ही मैं जाति-जाति को तेरे उत्तराधिकार में और पृथ्वी के छोर तेरी निज भूमि होने के लिए दे दूंगा
यीशु से प्रीति करने का मतलब है उसके लोगों से प्यार करना
जो भी कुछ यीशु का है उसने उसे जो उस पर विश्वास करता है दे दिया .
उसने तुम्हें और मुझे पृथ्वी के छोर तक राज्य करने के लिए चुना है
हम उस छोटे बच्चे की तरह है जिसने अपने जीवन के बचाव के लिए हाथ-पैर इधर-उधर मारे
इस संसार में कोई भी नहीं है जो स्वर्ग से आया हो
इस संसार में कोई भी नहीं है जो तुम्हारे या मेरे लिए मरा हो
हाँ, यीशु ही एकलौता व्यक्ति है जो स्वर्ग से आया, जो मेरे और तुम्हारे लिए मरा और वह और केवल वह ही हमे जीवन दे सकता है, क्योंकि वह ही तीसरे दिन मृत्यु से जी उठा और मृत्यु पर विजयी हो गया
एक कदम उठाओ, जो लोग उसे नहीं जानते है उन्हें उसके बारे में बताओ
बोलो कि वह उनसे प्यार करता है
यीशु के उद्धार और चंगाई का सुसमाचार उन्हें बताओ
यदि कोई हमे नरक कि आग से बच सकता है तो वह सिर्फ यीशु ही है
बोलो- यीशु पूछ रहा है कि क्या तुम मुझसे प्यार करते हो
बोलो- यीशु आदेश देता है कि उद्धार का सुसमाचार बताओ
प्रार्थना -
पिता परमेश्वर यीशु के नाम पर -
लुका 10:2 के अनुसार हम प्रार्थना करते है कि हमे परमेश्वर के राज्य के विस्तार के लिए प्रयोग में लायें और हमे अपना आज्ञा कारी सेवक बनायें, यीशु के नाम पर 
अमीन

Monday, December 24, 2012

आत्मा का फल: मसीह चरित्र


परिचय : क्या तुमने "जल्दबाजी की बीमारी" के बारे में सुना है? अमेरिका में सब तरह की बीमारियाँ  है जो परंपरागत बीमारी नहीं समझी जाती  है.  जल्दबाजी की बीमारी ऐसे ही भ्रमित करने वाली  है, जो मुझे है. मै हमेशा इस जल्दी में रहता हूँ कि जो काम कर रहा हूँ उसे जल्द से जल्द ख़तम कर लूं. इसको ख़तम करूँ  और अगले  काम की तरफ बढूँ . जब मै गाड़ी चला रहा हूँ, मै जल्दी में हूँ.  जब हम हवाई अड्डे पर किसी को लेने जा रहें होते हैं, मेरी पत्नी मुझसे कहती है कि धीरे चलो नहीं तो बहुत जल्दी वहां पहुँच जायेंगे. मुझे पता है कि यह सत्य है लेकिन उसकी सलाह मानना मुश्किल लगता है.
यह आत्मा के फलों की श्रंखला का  अंतिम पाठ है. हमारा  इस हफ्ते का बाइबिल अध्यन, स्वर्ग में जल्दी पहुचने की अपेक्षाकृत  हमारे इस अध्यन की विशेषता का रास्ता सुझाता है, जोकि बहुत चिंता का विषय है.
चलो हमलोग बाइबिल अध्यन में लग जाये और आत्मिक जल्दबाजी की बीमारी का इलाज खोज़े!
I. पहली चीज़ पहले
 A. पढ़े मत्ती 6:31-33. क्या काफ़िर लोगों को भी जल्दबाजी की बीमारी है? (हाँ! वो इस दुनिया की चीजों के पीछे भागते है.)
1. मसीह लोगों को क्या करना है और क्या नहीं करना है  इसके बारे में बताता है? (अनिवार्यता की चिंता ना करो. निश्चय ही, उसके राज्य एवं धार्मिकता  को तलाशो")
a. क्या यह दोनों (उसका राज्य एवं धार्मिकता) आपस में सम्बंधित है?
(1) क्या मांगने का क्रम जरूरी है? यदि हाँ, इसका क्या मतलब है कि पहले परमेश्वर का राज्य मांगो,  परमेश्वर की धार्मिकता के विरोध में? (यह मोक्ष का सिद्धांत पहले विश्वास से दर्शाता है उसके बाद धार्मिक जीवन जीने का लक्ष्य निर्धारित करता है.)
b. इन पदों को ध्यान देकर सोचो. यहाँ किस बात का वादा किया गया है? (   यदि हम मोक्ष की प्राप्ति विश्वास से करते है,और धार्मिकता की खोज करते है, तो हमे किसी और वस्तु की खोज करने की जरूरत नहीं है.)                            
c. समय समय पर मै एक  अध्यात्म विद्या के मंत्री का लेख पढता जो कि विश्वसनी नहीं लगता है . एक दिन उसने लिखा कि वो अपना बाइबिल का कार्य रोक रहा है, कुछ आराम करेगा और उस दौरान पैसा कमाएगा जिससे उसके सेवानिवृति  के दिन ठीक से गुजर सकें. चूँकि मुझे उसकी अध्यात्म विद्या पसंद नहीं थी, मैंने सोचा कि यह बहुत अच्छा प्रस्ताव है! उसका यह विचार मत्ती 6 से कैसे मिलता है? (यह विपरीत है)
B. क्या तुमने कभी सोचा है कि यदि तुमने परमेश्वर के राज्य का विस्तार अपना मुख्य धेय्य बनाया है, तो यह केवल आत्मा के फल ही नहीं वरन वो सब भी देगा जो काफ़िर लोग पाने के लिए भाग रहें है?
II. महिमा के मार्ग पर
A. पढ़े 2 कुरंथियो  3:7-8 पत्थर पर खुदे वचन दस आज्ञाएँ है. क्या मूसा के चेहरे पर महिमा दिखाई पड़ी थी, यह दस आज्ञाओं  के साथ आई थी? (पढ़े निर्गमन 34:29-30. हमेशा परमेश्वर की संगति में  रहने के कारण मूसा का  मुख परमेश्वर की महिमा से चमक उठा )
B. पढ़े 2 कुरंथियो 3:13-18. क्या तुम्हरे पास इस बात की सम्भावना है कि तुम्हरा मुख भी परमेश्वर की महिमा से चमक उठे? (हाँ!)
1. मूसा को घूँघट की क्यों जरूरत थी जबकि तुम्हे नहीं है? (कानून लोगों को धार्मिकता के कारण मूसा के पास नहीं लाया. इसलिए, वो परमेश्वर की महिमा के आगे नहीं खड़े हो पाए. लेकिन, जब हम परमेश्वर की कृपा से बच जाते है तो घूँघट की जरूरत नहीं होती है- क्योंकि तुम्हारा  चेहरा भी परमेश्वर की महिमा से चमकता है.)
2. जब हम देखते है कि परमेश्वर की महिमा भी हमारे चेहरे पर चमक रही है, क्या हम अपने लक्ष्य तक पहुँच गए हैं? (किसी भी हालत में नहीं! हम " परमेश्वर के प्रतिरूप में हमेशा बढती हुई महिमा के कारण परिवर्तित हो गए हैं.")
3. दोस्तों, क्या तुम चाहते हो कि लोग तुम्हरे चेहरे पर परमेश्वर की महिमा देख कर आश्चर्यचकित हो जाएँ?

4. यह बदलाव किस प्रकार संभव है? (2 कुरंथियो 3:18 का अंतिम भाग दोबारा देखे: " जो परमेश्वर से आता है, वो आत्मा है." यह पवित्र आत्मा का हमारे जीवन में  कार्य है. कदाचित इस पाठ का शीर्षक : आत्मा का फल प्रफुल्लित चेहरा होना चाहिए था.)
C. हमारे जीवन की यात्रा में, हमे चीजों के पीछे भागने वाला नहीं, बल्कि आनंद फैलाने वाला  बनना है!
III. पथ निर्देशक

A. कुछ आधुनिक कारों में ऐसे उपकरण लगे रहते हैं कि जैसे ही वो अपनी लेन से बाहर निकली की अलार्म बोलने लगता है |                          पढ़े 2 कुरंथियो 13:5-6. क्या हमारे पास भी ऐसा उपकरण होना चाहिए जो हमारे रोजमर्रा के कार्यो का हिसाब रख सके? ( बाइबिल बताती है कि हमे अपनी भी समय समय पर जाँच करते रहना चाहिए कि हम विश्वास में हैं.)
1 . डिफाल्ट स्थिति क्या है? क्या हम विश्वास के साथ आरंभ करते है या विश्वास के बिना? (यह मसीहियों के बारे में है, बाइबल कहती है मसीह यीशु का तुम में होना डिफाल्ट की स्थिति है| "ज़ाहिर सी बात है जब तक तुम परीक्षा में असफल होते हो" |
2 . क्या होता है जब हम परीक्षा में असफल हो जाते हैं? ( इन पदों से पता चलता है कि हम विश्वास में नहीं हैं |
B.   पढ़ें 2 कुरंथियों 13:7-9. पौलुस अपने अनुभव के बारे में क्या कहता है? ( वह कहता है कि वह सत्य के विरोध में कुछ नहीं कर सकता है, लेकिन लोग यह सोच सकते है कि वह परीक्षा में असफल हो गया)
 1.   इसका मतलब यह है कि पौलुस क्या विश्वास में नहीं है? (पौलुस कुछ ऐसा कह रहा है कि कोई भी निष्कलंक नहीं है, लेकिन लक्ष्य निष्कलंक होना है)
 C.   पढ़ें 2 कुरंथियों 13:11. हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? ("परिपूर्णता की ओर बढ़ना" | ऐसा जीवन जीना जो परमेश्वर की महीमा को जगमगाए)
 1.   शब्द "उद्देश्य" में क्या महत्वपूर्ण धारणाएं शामिल है? (लक्ष्य एक जानबूझ कर किया जाने वाला कार्य है | यह एक जाना-बूझा निर्णय है | लक्ष्य से यह भी निर्धारित होता है कि हम अभी तक मंजिल तक नहीं पहुंचे हैं)
  D.   पढ़ें युहन्ना 15:1-4. क्या हम मार्ग से अधिकतर भटक सकते है अगर हम निश्कलंकता के रास्ते पर ना हो? (अगर हम फलों से भरे नहीं हैं ( आत्मिक फल जिनके बारे में हम चर्चा कर रहें हैं), तब हम छटाई के लिए हैं)
 1.   फलदाई होने की कुंजी क्या है? ( यीशु में बने रहना| जिस तरह से यीशु कहता है बहुत आसान लगता है | कैसे एक पौधे का भाग फल धारण कर सकता जब तक कि वह मुख्य भाग से जुड़ा ना रहें?
  E.   पढ़ें  युहन्ना 15:9-10. यह किस तरह की परीक्षा है? हमारी गली की सतर्कता का अलार्म कब बंद होगा? कब जानेगे कि हमने जगमगाना बंद कर दिया है और जल्दबाजी शुरू कर दी है ? (जब हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना बंद कर  देतें हैं)
 1.   पहले हमने चर्चा की है (2 कुरंथियों 3:14) किस तरह दस आज्ञाओं ने लोगों के दिमागों को सुस्त कर दिया| क्या यीशु पौलुस की बात से सहमत है?
  F.   पढ़ें युहन्ना 15:12-17. क्या यीशु  आज्ञाएँ मानने का नया प्रस्ताव दे रहा है? (मैं नहीं जानता अगर यह कोई नयी बात है, लेकिन यह प्रस्ताव सीने पर्वत से  भिन्न है| अगर हम अपने चित्त की स्थिरता रखें और दस आज्ञाओं का पालन करें तो हमने सुस्त दिमाग के प्रस्ताव को अपनाया है| हम वास्तव में नहीं समझते कि क्या हो रहा है| दूसरी तरफ अगर हम यह विचार करें कि यीशु ने हमसे कितना प्रेम किया कि वह हमारे लिए इतनी पीड़ा जनक मृत्यु सह गया, और वह ऐसी मौत आज्ञाओं की आवशयकताओं को पूरा करने के कारण मरा, जबकि हम नहीं, तब यह हमारे दिलों में परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने की इच्छा उमड़ पड़ती है )
 1.   क्या तुम दो दृष्टिकोणों के बीच का व्यवहारिक अंतर देख सकते हो?
 2.   यीशु की सेवक और मित्र के विषय की चर्चा क्या ज़ाहिर करती है? (सेवक एक छोटे बच्चे की तरह है बस उसे निर्देश देने की जरूरत है| स्पष्टीकरण देने की ज़रुरत नहीं है| तुम अपने मित्र और साथी को क्या करना है यह नहीं कह सकते हो| तुम्हें उन्हें समझाना पड़ेगा ताकि वे तुम्हारे उद्देश्य में हिस्सा बटा सके| हम दस आज्ञाओं को नियमों के उन गुच्छों की तरह नहीं ले सकते जो स्वर्ग में इनाम दिला सकते है | इन्हें हम एक अंदरूनी मार्ग दर्शक के तौर पर अपनायें जिससे परमेश्वर व लोगों के प्रति हमारा सम्बन्ध प्रेम दर्शा सके |
 G.   मित्र, हमारा मौजूदा सम्बन्ध परमेश्वर के साथ उसकी पवित्र आत्मा के जरिये है| आज से प्रार्थना करना शुरू कर दो की पवित्र आर्म पूरे समर्थ से तुम्हारे ऊपर आये और तुम्हें सही मनोभाव दे ताकि इस श्रंखला में जिन आत्मिक फलों के बारे में चर्चा की गई है वे तुम्हारे जीवन में दिखाई दें| क्या तुम प्रार्थना करोगे कि तुम्हारा जीवन निश्कलंकता के मार्ग पर चल पड़े ?

Sunday, December 16, 2012

परमेश्वर की महिमा हो उससे ही सब आशीषें हैं

परिचयआपका स्वास्थय कितना जरूरी हैक्या आप हर सुबह जब उठते हैं अपने आप को तरोताजा देखना चाहते हैं?  यदि पैसा कोई पैमाना हैमैंने पढ़ा है कि केवल अमेरिका में दो खरब डालर (खरबअरब नहीं)  से ज्यादा  हमारे स्वास्थय पर खर्च किया जाता  हैक्या परमेश्वर हमारे स्वास्थय का ध्यान रखता हैक्या धार्मिकता एवं स्वास्थय में कोई सम्बन्ध हैक्या हमारा परमेश्वर के साथ  कोई करार है  कि स्वास्थय रहने के लिए हम भरसक प्रयास करेंगेचलो हम बाइबिल अध्यन में लगजाते हैं और देखते हैं कि बाइबिल स्वास्थय के बारे में क्या बताती है
1. प्रशंसा  के कारण 
A. पढ़े भजन संहिता 103:1. "भीतर सेपरमेश्वर की प्रशंसा  करो इसका क्या मतलब होता है? ( यह दिखावटी प्रशंसा  नहीं है.  यह परमेश्वर की प्रशंसा  बिलकुल भीतरी भाग से हैबिलकुल गहराई से.)
B. पढ़े भजन संहिता 103:2. मैंने अक्सर लोगों को यह कहते सुना है कि हमे परमेश्वर की प्रशंसा करने चाहिए "क्योंकि वो कौन है." भजन लेखक परमेश्वर की प्रशंसा करने के लिए कौन से अतरिक्त  कारण देता है? (वो हमे लाभ पहुंचाता हैयह तो प्रशंसा करने  का बिलकुल स्वार्थी कारण लगता हैलेकिन यह स्वाभाविक है(और आसानउसकी प्रशंसा करना जो हमारी सहायता करता है.)  
C. पढ़े भजन संहिता 103:3-5. स्तुति लेखक यहाँ क्या वर्णन कर रहा है? (पहले से चर्चित फायदे जो परमेश्वर हमे देता है!)
1. चलो इन फायदों की लिस्ट बनाते हैं. (पाप से माफ़ीरोगों का उपचारहमे गड्ढे  से बाहर निकालनाप्रेम एवं अनुकम्पा देनाहमारी इच्छायों  की पूर्ति अच्छी चीज़ों सेहमे योवन देना.) 
a. जैसे तुम इस लिस्ट को देखते होक्या  इन फायदों में से किसी का भी स्वास्थय से कुछ लेना देना है? (हाँहमे जवानी की अनुभूति कराना एवं बिमारिओं से छुटकारा दिलाना है.) 
b. क्या तुम इस बात को कोई महत्त्व देते हो कि जब लेखक हमारे फायदों की लिस्ट बना रहा था उसने सबसे पहले पापों की माफ़ी रखी उसके बाद रोगों से मुक्ती? (अनंत जीवन इस धरती के जीवन से ज्यादा ठीक है.) 
(1) चलो इन दो फायदों को देखते हैं
हमारे पापों की माफ़ी तथा हमारे रोगों से छुटकाराविस्तारपूर्वक.
II. पापों से माफ़ी के लिए प्रशंसा करो.
A. पढ़े 2 तिमुथियस 1:9. परमेश्वर ने हमे हमारे पापों से छुटकारा दिलाने का प्लान कब बनाया था? ( समय शुरू होने से पहलेहमारे अस्तित्व में आने से पहले.)
1. परमेश्वर ने जब हमारी रचना करी यह उसके बारे में क्या संकेत देता है? (उसने हमारी रचना इस ज्ञान के साथ करी थी कि हो सकता है कि  हम उसको अस्वीकार कर देंगे.) 
a. कल्पना करो कि तुम माँ अथवा पिता हो और तुम्हरे बच्चे ने तुम्हे अस्वीकार कर दिया हैयदि तुम समय पीछे कर सकते थे और इस बच्चे को पैदा नहीं होने देतेक्या तुम ऐसा करते? (जो माता पिता यह कहते, "कि मै इस बच्चे कि अभिलाषा रखता हूँ"   असाधारण  प्रेम दिखाना हैहमारे परमेश्वर हमारे लिए वोही असाधारण प्रेम दिखाया है.) 
B. पढ़े इफिसियों 2:8-10.  क्या हम इस योग्य हैं कि हमारे पापों की माफ़ी हो तथा हमे  अनंत जीवन  मिले?  (नहींयह तो परमेश्वर की तरफ से उपहार हैना कि हमारे कार्यों का परिणामहालाँकिहमारी रचना अच्छे कार्य करने के लिए हुई है.)
C. अब हम समझ सकते हैं कि क्यों गीतकार भजन 103:3 में परमेश्वर की प्रशंसा हमारे पापों की माफ़ी के लिए करता है
III. परमेश्वर की प्रशंसा करे कि उसने हमे बिमारियों से छुटकारा दिलाया तथा किशोरावस्था दी 
पढ़े निर्गमन 15:26.  परमेश्वर की आज्ञा  मानना तथा बीमारी के बीच क्या सम्बन्ध है
1. क्या इसका मतलब यह हुआ क्योंकि हमने पाप किया है इसलिए बीमार हुए? (शायद)
2. याकूब की पुस्तक हमको इस विषय के बारे में क्या सिखाती है? (याकूब के "दोस्तउससे से कह रहें हैं कि तुम परमेश्वर की बात नहीं मानते हो इसलिए बीमार हो तथा पीड़ा में होलेकिनहमे याकूब की पुस्तक के पहले पाठ    से  पता है कि परमेश्वर ने शैतान से कहा था कि याकूब "दोषरहित एवं धार्मिकवो मनुष्य जो परमेश्वर का भय खाता है तथा बुराई से दूर रहता है." याकूब 1:8.)
a. याकूब एवं निर्गमन 15:26 से  बीमारी की जड़ के बारे में क्या निष्कर्ष निकाले?(कभी कभी हम बीमार हो जाते है कि हमने परमेश्वर का अनुकरण  नहीं किया और कभी हम बीमार हो जाते हैं कि हमने परमेश्वर का अनुकरण कियाइसके अलावाहमारा सामान्य ज्ञान हमे बताता है कि कभी  कभी  हम बीमार हो जाते है क्योंकि हम पापी दुनिया में रहते है.)
3. निर्गमन 15:26. के  कुछ  अंतिम शब्द देखे." मै तुम्हारा चंगा करने वाला परमेश्वर हूँ." क्या परमेश्वर का हमारे स्वास्थय में प्रतिकूल तथा अनुकूल कोई सम्बन्ध है? ( ऐसा जान पड़ता है कि परमेश्वर कह रहा है कि मै रोगों को ठीक करने वाला हूँयह परमेश्वर के सामान्य गुण हैस्वास्थय की तरफ एक सकारात्मक रुखहालाँकिपरमेश्वर अवज्ञाकारी के ऊपर बीमारी भी लाता हैपरमेश्वर हमारे स्वास्थय में स्वाकारात्मक  एवं नकारात्मक दोनों रूप में शामिल है.)    
B. पढ़े यिर्मयाहा 7:22-23. क्या परमेश्वर लोगों को उसकी आराधना करने की आज्ञा दे सकता था? (बिलकुलइसी तरह लोग मूर्ति देखा करते थे)        
1. परमेश्वर ने हमारे लिए और क्या किया? (परमेश्वर केवल हमारी प्राथर्ना  नहीं मांग रहा हैपरमेश्वर हमारे साथ सम्बन्ध बनाना देख रहा हैपरमेश्वर चाहता है कि हमारा जीवन सुख पूर्वक जाएऔर इसी कारण से उसने इतनी सारे आदेश दिए हैंयह आज्ञापालन का सकारात्मक पक्ष  है, "उपचारात्मकपक्ष.)
2. हम बाइबिल में इसके क्या उधारण देखते है? (यदि तुम लैव्यवस्था के पाठ 11-15 को  सरसरी नजर से देखे तो यह पायेगे कि परमेश्वर ने मूसा को बहुत सारे नियम दिए थे जिससे लोग स्वस्थ्य एवं रोग मुक्त रह सके.)
C. पढ़े नीति वचन 3:7-8. अहंकार से दूर रहोपरमेश्वर से डरोबुराई से कन्नी काटोक्या प्रतक्ष्य रूप से  इनका स्वाथ्य एवं मजबूत हड्डियों से कोई सम्बन्ध है?(यह आत्मिक एवं प्राकर्तिक स्वास्थय में सम्बन्ध दिखाता हैऐसा लगता है कि यह परमेश्वर का विचार है कि हमारे ऊपर निर्णय अथवा परख के कारण बीमारी आईऔर उपचार आशीष की तरह आयेधार्मिकता एवं स्वास्थय के बीच में कोई सहज सम्बन्ध हैआज्ञाकारिता का स्वाभाविक परिणाम मजबूत एवं स्वस्थ्य शरीर है.)    
  IV. त्याग की प्रशंसा करे 
A. पढ़े रोमिओ 12:1. मैंने सोचा यीशु परमेश्वर का मेमना था जो हमारे पापों को ले जाने की खातिर मराहम क्यों त्याग करते हैं
1. चलो हम इस समस्या का हल खोज़ेहमारे त्याग करने का क्या कारण है? ( "परमेश्वर के विचार से दया." यह उस दया की तरफ इशारा है जो यीशु ने हमको हमारे पापों के लिए मर कर दिखाईउसके अनुनयाई होने के कारण हमे वो ही त्याग वाली प्रवर्ती दिखानी होगी.)  
2. हमारा बलिदान यीशु के बलिदान से किस प्रकार भिन्न है? (हम लोग एक  "जीवितबलिदान हैमै इसको "मृत्युबलिदान के ऊपर चुनुगा!)
3. यह कैसे आराधना है? ( हमारी आराधना का एक हिस्सा उस परमेश्वर के लिए है जिसने अपना जीवन हमारे लिए बलिदान कियाउसके लिए हम कुछ बलिदान करते है.)
4. अब यहाँ एक गूढ़ प्रश्न आता हैहम किस प्रकार के बलिदान की बात कर रहें हैतुम्हे इससे क्या समझ में आता है कि तुम अपना "शरीरएक "जीवित बलिदानकी तरह भेंट कर दो?"
B. पढ़े रोमिओ 12:2. यह पूर्व प्रश्न का क्या संभावित जवाब देता है?(हमारा "बलिदानपरमेश्वर की वसीयत के अनुरूप है नाकि दुनिया की इच्छानुसार.)
1. रोमिओ 12:1. हमारे शरीर को उल्लिखित करता है और यह हमारे दिमाग को हवाला देता हैक्या यह दोनों जीवित बलिदान में शामिल है? (निसंदेह:, इसमें प्राकृतिक अंश हैस्वस्थ्य शरीर परमेश्वर के लिए "बलिदानका एक सकारात्मक रूप दिखाता हैहमारे कार्य करने के ढंग हमारे दिमाग की प्रवर्ती के अनुसार होते हैहमे दिमाग एवं शरीरका पूर्ण रूप से बलिदान देने की आवश्यकता है!) 
2. क्या स्वस्थ्य इसका एक भाग है? (इसका समानान्तर नया दिमाग तथा नया शरीर लगता हैयह हमारी परमेश्वर  की पूर्ण आराधना  को प्रदर्शित करती है.) 
3. सभी प्रकार के लोग अपने शरीर की पूजा करते हैंयह हमारे जीवन का एक उद्देश्य हैक्या हमने यहाँ पर इसकी  चर्चा करी है? (लेख हमे दुनिया के अनुरूप चलने के बारे में चेतावनी देता है.इसके स्थान परहमारी दिमाग एवं शरीर से की गयी आराधना हमारे परमेश्वर की महानता दिखाती है.) 
C. दोस्तोंअगर तुमने स्वास्थ्य एवं धार्मिकता के बीच के सम्बन्ध के बारे नहीं सोचा हैअगर तुमने अपने शरीर के बारे में अपनी परमेश्वर की आराधना का एक हिस्सा समझ कर नहीं सोचा हैक्या तुम आज इसबारे में गौर करोगेआज क्यों नहीं वचनबद्ध हो जाओ और परमेश्वर से कहो की वो तुम्हारीदिमाग ही नहींपरन्तुतुम्हरे शरीर  को भी एक "जीवित बलिदानबनाने में सहायता करे?