Monday, December 24, 2012

आत्मा का फल: मसीह चरित्र


परिचय : क्या तुमने "जल्दबाजी की बीमारी" के बारे में सुना है? अमेरिका में सब तरह की बीमारियाँ  है जो परंपरागत बीमारी नहीं समझी जाती  है.  जल्दबाजी की बीमारी ऐसे ही भ्रमित करने वाली  है, जो मुझे है. मै हमेशा इस जल्दी में रहता हूँ कि जो काम कर रहा हूँ उसे जल्द से जल्द ख़तम कर लूं. इसको ख़तम करूँ  और अगले  काम की तरफ बढूँ . जब मै गाड़ी चला रहा हूँ, मै जल्दी में हूँ.  जब हम हवाई अड्डे पर किसी को लेने जा रहें होते हैं, मेरी पत्नी मुझसे कहती है कि धीरे चलो नहीं तो बहुत जल्दी वहां पहुँच जायेंगे. मुझे पता है कि यह सत्य है लेकिन उसकी सलाह मानना मुश्किल लगता है.
यह आत्मा के फलों की श्रंखला का  अंतिम पाठ है. हमारा  इस हफ्ते का बाइबिल अध्यन, स्वर्ग में जल्दी पहुचने की अपेक्षाकृत  हमारे इस अध्यन की विशेषता का रास्ता सुझाता है, जोकि बहुत चिंता का विषय है.
चलो हमलोग बाइबिल अध्यन में लग जाये और आत्मिक जल्दबाजी की बीमारी का इलाज खोज़े!
I. पहली चीज़ पहले
 A. पढ़े मत्ती 6:31-33. क्या काफ़िर लोगों को भी जल्दबाजी की बीमारी है? (हाँ! वो इस दुनिया की चीजों के पीछे भागते है.)
1. मसीह लोगों को क्या करना है और क्या नहीं करना है  इसके बारे में बताता है? (अनिवार्यता की चिंता ना करो. निश्चय ही, उसके राज्य एवं धार्मिकता  को तलाशो")
a. क्या यह दोनों (उसका राज्य एवं धार्मिकता) आपस में सम्बंधित है?
(1) क्या मांगने का क्रम जरूरी है? यदि हाँ, इसका क्या मतलब है कि पहले परमेश्वर का राज्य मांगो,  परमेश्वर की धार्मिकता के विरोध में? (यह मोक्ष का सिद्धांत पहले विश्वास से दर्शाता है उसके बाद धार्मिक जीवन जीने का लक्ष्य निर्धारित करता है.)
b. इन पदों को ध्यान देकर सोचो. यहाँ किस बात का वादा किया गया है? (   यदि हम मोक्ष की प्राप्ति विश्वास से करते है,और धार्मिकता की खोज करते है, तो हमे किसी और वस्तु की खोज करने की जरूरत नहीं है.)                            
c. समय समय पर मै एक  अध्यात्म विद्या के मंत्री का लेख पढता जो कि विश्वसनी नहीं लगता है . एक दिन उसने लिखा कि वो अपना बाइबिल का कार्य रोक रहा है, कुछ आराम करेगा और उस दौरान पैसा कमाएगा जिससे उसके सेवानिवृति  के दिन ठीक से गुजर सकें. चूँकि मुझे उसकी अध्यात्म विद्या पसंद नहीं थी, मैंने सोचा कि यह बहुत अच्छा प्रस्ताव है! उसका यह विचार मत्ती 6 से कैसे मिलता है? (यह विपरीत है)
B. क्या तुमने कभी सोचा है कि यदि तुमने परमेश्वर के राज्य का विस्तार अपना मुख्य धेय्य बनाया है, तो यह केवल आत्मा के फल ही नहीं वरन वो सब भी देगा जो काफ़िर लोग पाने के लिए भाग रहें है?
II. महिमा के मार्ग पर
A. पढ़े 2 कुरंथियो  3:7-8 पत्थर पर खुदे वचन दस आज्ञाएँ है. क्या मूसा के चेहरे पर महिमा दिखाई पड़ी थी, यह दस आज्ञाओं  के साथ आई थी? (पढ़े निर्गमन 34:29-30. हमेशा परमेश्वर की संगति में  रहने के कारण मूसा का  मुख परमेश्वर की महिमा से चमक उठा )
B. पढ़े 2 कुरंथियो 3:13-18. क्या तुम्हरे पास इस बात की सम्भावना है कि तुम्हरा मुख भी परमेश्वर की महिमा से चमक उठे? (हाँ!)
1. मूसा को घूँघट की क्यों जरूरत थी जबकि तुम्हे नहीं है? (कानून लोगों को धार्मिकता के कारण मूसा के पास नहीं लाया. इसलिए, वो परमेश्वर की महिमा के आगे नहीं खड़े हो पाए. लेकिन, जब हम परमेश्वर की कृपा से बच जाते है तो घूँघट की जरूरत नहीं होती है- क्योंकि तुम्हारा  चेहरा भी परमेश्वर की महिमा से चमकता है.)
2. जब हम देखते है कि परमेश्वर की महिमा भी हमारे चेहरे पर चमक रही है, क्या हम अपने लक्ष्य तक पहुँच गए हैं? (किसी भी हालत में नहीं! हम " परमेश्वर के प्रतिरूप में हमेशा बढती हुई महिमा के कारण परिवर्तित हो गए हैं.")
3. दोस्तों, क्या तुम चाहते हो कि लोग तुम्हरे चेहरे पर परमेश्वर की महिमा देख कर आश्चर्यचकित हो जाएँ?

4. यह बदलाव किस प्रकार संभव है? (2 कुरंथियो 3:18 का अंतिम भाग दोबारा देखे: " जो परमेश्वर से आता है, वो आत्मा है." यह पवित्र आत्मा का हमारे जीवन में  कार्य है. कदाचित इस पाठ का शीर्षक : आत्मा का फल प्रफुल्लित चेहरा होना चाहिए था.)
C. हमारे जीवन की यात्रा में, हमे चीजों के पीछे भागने वाला नहीं, बल्कि आनंद फैलाने वाला  बनना है!
III. पथ निर्देशक

A. कुछ आधुनिक कारों में ऐसे उपकरण लगे रहते हैं कि जैसे ही वो अपनी लेन से बाहर निकली की अलार्म बोलने लगता है |                          पढ़े 2 कुरंथियो 13:5-6. क्या हमारे पास भी ऐसा उपकरण होना चाहिए जो हमारे रोजमर्रा के कार्यो का हिसाब रख सके? ( बाइबिल बताती है कि हमे अपनी भी समय समय पर जाँच करते रहना चाहिए कि हम विश्वास में हैं.)
1 . डिफाल्ट स्थिति क्या है? क्या हम विश्वास के साथ आरंभ करते है या विश्वास के बिना? (यह मसीहियों के बारे में है, बाइबल कहती है मसीह यीशु का तुम में होना डिफाल्ट की स्थिति है| "ज़ाहिर सी बात है जब तक तुम परीक्षा में असफल होते हो" |
2 . क्या होता है जब हम परीक्षा में असफल हो जाते हैं? ( इन पदों से पता चलता है कि हम विश्वास में नहीं हैं |
B.   पढ़ें 2 कुरंथियों 13:7-9. पौलुस अपने अनुभव के बारे में क्या कहता है? ( वह कहता है कि वह सत्य के विरोध में कुछ नहीं कर सकता है, लेकिन लोग यह सोच सकते है कि वह परीक्षा में असफल हो गया)
 1.   इसका मतलब यह है कि पौलुस क्या विश्वास में नहीं है? (पौलुस कुछ ऐसा कह रहा है कि कोई भी निष्कलंक नहीं है, लेकिन लक्ष्य निष्कलंक होना है)
 C.   पढ़ें 2 कुरंथियों 13:11. हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है? ("परिपूर्णता की ओर बढ़ना" | ऐसा जीवन जीना जो परमेश्वर की महीमा को जगमगाए)
 1.   शब्द "उद्देश्य" में क्या महत्वपूर्ण धारणाएं शामिल है? (लक्ष्य एक जानबूझ कर किया जाने वाला कार्य है | यह एक जाना-बूझा निर्णय है | लक्ष्य से यह भी निर्धारित होता है कि हम अभी तक मंजिल तक नहीं पहुंचे हैं)
  D.   पढ़ें युहन्ना 15:1-4. क्या हम मार्ग से अधिकतर भटक सकते है अगर हम निश्कलंकता के रास्ते पर ना हो? (अगर हम फलों से भरे नहीं हैं ( आत्मिक फल जिनके बारे में हम चर्चा कर रहें हैं), तब हम छटाई के लिए हैं)
 1.   फलदाई होने की कुंजी क्या है? ( यीशु में बने रहना| जिस तरह से यीशु कहता है बहुत आसान लगता है | कैसे एक पौधे का भाग फल धारण कर सकता जब तक कि वह मुख्य भाग से जुड़ा ना रहें?
  E.   पढ़ें  युहन्ना 15:9-10. यह किस तरह की परीक्षा है? हमारी गली की सतर्कता का अलार्म कब बंद होगा? कब जानेगे कि हमने जगमगाना बंद कर दिया है और जल्दबाजी शुरू कर दी है ? (जब हम परमेश्वर की आज्ञा का पालन करना बंद कर  देतें हैं)
 1.   पहले हमने चर्चा की है (2 कुरंथियों 3:14) किस तरह दस आज्ञाओं ने लोगों के दिमागों को सुस्त कर दिया| क्या यीशु पौलुस की बात से सहमत है?
  F.   पढ़ें युहन्ना 15:12-17. क्या यीशु  आज्ञाएँ मानने का नया प्रस्ताव दे रहा है? (मैं नहीं जानता अगर यह कोई नयी बात है, लेकिन यह प्रस्ताव सीने पर्वत से  भिन्न है| अगर हम अपने चित्त की स्थिरता रखें और दस आज्ञाओं का पालन करें तो हमने सुस्त दिमाग के प्रस्ताव को अपनाया है| हम वास्तव में नहीं समझते कि क्या हो रहा है| दूसरी तरफ अगर हम यह विचार करें कि यीशु ने हमसे कितना प्रेम किया कि वह हमारे लिए इतनी पीड़ा जनक मृत्यु सह गया, और वह ऐसी मौत आज्ञाओं की आवशयकताओं को पूरा करने के कारण मरा, जबकि हम नहीं, तब यह हमारे दिलों में परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने की इच्छा उमड़ पड़ती है )
 1.   क्या तुम दो दृष्टिकोणों के बीच का व्यवहारिक अंतर देख सकते हो?
 2.   यीशु की सेवक और मित्र के विषय की चर्चा क्या ज़ाहिर करती है? (सेवक एक छोटे बच्चे की तरह है बस उसे निर्देश देने की जरूरत है| स्पष्टीकरण देने की ज़रुरत नहीं है| तुम अपने मित्र और साथी को क्या करना है यह नहीं कह सकते हो| तुम्हें उन्हें समझाना पड़ेगा ताकि वे तुम्हारे उद्देश्य में हिस्सा बटा सके| हम दस आज्ञाओं को नियमों के उन गुच्छों की तरह नहीं ले सकते जो स्वर्ग में इनाम दिला सकते है | इन्हें हम एक अंदरूनी मार्ग दर्शक के तौर पर अपनायें जिससे परमेश्वर व लोगों के प्रति हमारा सम्बन्ध प्रेम दर्शा सके |
 G.   मित्र, हमारा मौजूदा सम्बन्ध परमेश्वर के साथ उसकी पवित्र आत्मा के जरिये है| आज से प्रार्थना करना शुरू कर दो की पवित्र आर्म पूरे समर्थ से तुम्हारे ऊपर आये और तुम्हें सही मनोभाव दे ताकि इस श्रंखला में जिन आत्मिक फलों के बारे में चर्चा की गई है वे तुम्हारे जीवन में दिखाई दें| क्या तुम प्रार्थना करोगे कि तुम्हारा जीवन निश्कलंकता के मार्ग पर चल पड़े ?

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